आज हम जिस कवि के बारे में बात करने जा रहे हैं. उसे असल मायनों में युवा दिलों की धड़कन कहा जाता है. उस कवि द्वारा कही गई हर एक पंक्ति युवाओं के दिलों में मानो घर कर जाती हो. चेहरे पर हमेशा मुस्कान लिए ये शख्स अपने ‘दीवाने’ पन होने का सब को ‘विश्वास’ दिलाता रहता है. जी हाँ… विश्वास.
आखिर हम किस शख्सियत के बारे में बात कर रहे हैं, ये बात अगर आप समझने में कामयाब हुए हैं, तो आपको बधाई. और नहीं हुए तो आगे नाम के साथ उनके रोचक किस्से जरूर पढ़ें.
बात हो रही है मशहूर हिंदी कवि कुमार विश्वास की. उनकी लिखी हुई कविता ‘कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है’ आज भी हर किसी के जुबान पर है. आज वह कविता और उसे सुनाने की कला की बदौलत युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं.
कुमार विश्वास के जिंदगी के अहम किस्से
कुमार विश्वास ने साल 1994 में राजस्थान के एक कॉलेज में लेक्चरर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी. आज वह हिंदी कविता मंच के सबसे व्यस्ततम कवियों में से एक हैं. उन्होंने कई कवि सम्मेलनों की शोभा बढ़ाई है. साथ ही वह पत्रिकाओं के लिए वह भी लिखते हैं. मंचीय कवि होने के साथ-साथ विश्वास हिंदी सिनेमा के गीतकार भी हैं.
कुमार विश्वास का जन्म 10 फरवरी, 1970 को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जनपद के पिलखुआ में हुआ था. इनके पिता का नाम डॉ. चंद्रपाल शर्मा हैं, जो आरएसएस डिग्री कॉलेज में प्रध्यापक हैं और मां का नाम रमा शर्मा है. कुमार अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं.
बता दें कुमार विश्वास का पूरा नाम विश्वास कुमार शर्मा है. जिसे बहन के कहने उन्होंने कुमार विश्वास रख लिया. इसके पीछे का कारण बताते हुए कुमार कहते हैं कि उनकी बहन ने कहा इतना बड़ा नाम कवियों के लिए ठीक नहीं. तो बेहतर होगा कुमार विश्वास जिसमें अपनापन छलकता है.
पैसे बचाने के लिए करते थे ट्रक में सफर
शुरुआती दिनों में जब कुमार विश्वास कवि सम्मेलनों से देर से लौटते थे, तो पैसे बचाने के लिए ट्रक में लिफ्ट लिया करते थे. अपने काम के प्रति उनकी लगन और मेहनत का नतीजा है कि आज कुमार विश्वास एक ब्रांड हैं.
कुमार की लोकप्रिय कविताएं हैं- ‘कोई दीवाना कहता है’, ‘तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊंगा’, ‘ये इतने लोग कहां जाते हैं सुबह-सुबह’, ‘होठों पर गंगा है’ और ‘सफाई मत देना’ है.
पिता की ख्वाहिश के उलट चुनी राह
कुमार विश्वास की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव से हुई. इसके बाद कुमार ने राजपुताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज से 12वीं पास की. उनके पिता चाहते थे कि कुमार इंजीनियर बनें. लेकिन उनका इंजीनियरिंग की पढ़ाई में मन नहीं लगता था. वह कुछ अलग करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और हिंदी साहित्य में ‘स्वर्ण पदक’ के साथ ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. एमए करने के बाद उन्होंने ‘कौरवी लोक गीतों में लोकचेतना’ विषय पर पीएचडी हासिल की. उनके इस शोधकार्य को वर्ष 2001 में पुरस्कृत भी किया गया था.
कुमार विश्वास और सम्मान
साल 1994 में कुमार विश्वास को ‘काव्य कुमार’ 2004 में ‘डॉ सुमन अलंकरण’ अवार्ड, 2006 में ‘श्री साहित्य’ अवार्ड और 2010 में ‘गीत श्री’ अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं.