आज की ये खबर कई मायनों में बेहद खास है. क्योंकि इस कहानी के मुख्य किरदार हैं. महेंद्र सिंह धोनी… झारखंड जैसे छोटे राज्य के रांची शहर से किसी ने शायद की यह उम्मीद की होगी कि एक छरहरे बदन का लंबे बाल वाला लड़का एक दिन ना सिर्फ भारत. बल्कि विश्व क्रिकेट में अपनी अलग पहचान बनाएगा.
साल 2004 में महेंद्र सिंह धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना पर्दारपण किया था. यह वह दौर था जब भारतीय टीम एक अदद ऐसे विकेट कीपर की तलाश कर रही थी. जो ना सिर्फ अच्छी विकेट कीपिंग कर सकता हो. बल्कि बेहतरीन बल्लेबाजी भी कर सके, जिससे कि टीम में बेहतर संतुलन बना रहे और एक खिलाड़ी की अतिरिक्त जगह बनी रहे.
धोनी के आने से पहले राहुल द्रविड़ कुछ समय के लिए अस्थायी विकेट कीपर के तौर पर टीम में बतौर विकेट कीपर बल्लेबाज खेल रहे थे. धोनी से पहले पार्थिव पटेल, दिनेश कार्तिक को टीम में जगह दी गई थी. लेकिन दोनों ही उस वक्त बल्ले से कुछ खास नहीं कर सके थे.
हालांकि, शुरुआत में धोनी बल्ले से कुछ खास नहीं कर सके और पहले वनडे में बिना खाता खोले रन आउट होकर चले गए. बांग्लादेश के खिलाफ अपना ओडीआई करियर शुरू करने वाले धोनी को इसके बाद पाकिस्तान के दौरे में भी मौका मिला और फिर धोनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
दुनिया के शीर्ष 3 बेहतरीन विकेट कीपर बल्लेबाज में धोनी
धोनी जिस तरह से मैदान पर अपनी उपस्थिति को लोगों के बीच दर्ज कराते थे और शायद ही कभी ऐसा हुआ हो जब धोनी ने मैदान में अपना संतुलन या आपा खोया हो. अपने इसी शांत स्वभाव की वजह से उन्हें लोग कैप्टन कूल के नाम से भी जानते थे. मैदान के पीछे से जिस तरह से धोनी टीम को एक डोर में बांधे रहते थे और खेल में खुद को पूरी तरह से हर समय सक्रिय रखते थे, उसने उनकी एक अलग पहचान स्थापित की.
धोनी को भारतीय क्रिकेट के इतिहास और दुनिया के शीर्ष बेहतरीन विकेट कीपर बल्लेबाजों की लिस्ट में शामिल किया जाता है. दुनिया के तीन सबसे बेहतरीन विकेटकीपर बल्लेबाजों की बात करें तो उसमें एडम गिलक्रिस्ट, कुमार संगाकारा और महेंद्र सिंह धोनी का नाम निसंदेह शीर्ष 3 में शामिल होगा.
धोनी के तूफ़ान में उड़ा पाकिस्तान
पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज के दूसरे मैच और अपने करियर के पांचवे मैच में दुनिया ने बल्ले से धोनी का तूफान देखा. इस मैच में धोनी ने 123 गेंदों पर 148 रनों की तूफानी पारी खेली और उस वक्त बतौर विकेट कीपर सर्वोच्च पारी का रिकॉर्ड अपने नाम किया. इसके बाद श्रीलंका के खिलाफ सीरीज में धोनी को नंबर तीन पर बल्लेबाजी का मौका मिला.
साल 2005 यह ऐसा समय था. जब टीम इंडिया मुख्य तौर पर सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाजी पर ही निर्भर रहती थी. श्रीलंका के खिलाफ तीसरे वनडे मैच में जब लंका ने संगाकारा के शतक की बदौलत टीम इंडिया के सामने 299 रन का लक्ष्य रखा और सचिन तेंदुलकर जल्दी पवेलियन लौट गए तो धोनी को नंबर तीन पर बल्लेबाजी का मौका मिला. ताकि वह स्कोर बोर्ड को तेजी से बढ़ा सके. धोनी ने इस मौके को हाथो-हाथ लिया और महज 145 गेंदों पर 183 रनों की नाबाद आतिशी पारी खेल डाली और टीम इंडिया को शानदार जीत दिलाई. इस जीत के साथ ही धोनी को बेहतरीन फिनिशर के तौर पर देखा जाने लगा था.
टी-20 विश्वकप
अपनी आतिशी बल्लेबाजी और बेहतरीन विकेट कीपिंग के दम पर धोनी ने टीम इंडिया में अपनी जगह पक्की की. साल 2007 की बात करें तो धोनी ने खुद को टीम में एक स्थायी खिलाड़ी के तौर पर स्थापित कर लिया था. यह ऐसा वक्त था जब टीम इंडिया में सौरव गांगुली की बेहतरीन लीडरशिप में कई युवा खिलाड़ियों को आगे आने का मौका मिला था और इस वर्ष पहला टी-20 विश्व कप का आयोजन होना था.
विश्व कप से पहले धोनी ने वेस्टइंडीज और श्रीलंका के दौर पर शानदार बल्लेबाजी की और उनका औसत दोनों ही सीरीज में 100 से अधिक था. अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत धोनी को टी-20 टीम की कमान सौंपी गई. मैदान पर अपनी सूझबूझ, बेहतरी कप्तानी, बल्लेबाजी के दम पर धोनी ने टीम इंडिया को पहला टी-20 विश्वकप जिताया. 1983 के बाद धोनी पहले ऐसे भारतीय कप्तान बने जिन्होंने टीम इंडिया को विश्व कप जिताया
2007 के टी-20 विश्वकप में भारतीय टीम की जीत ने युवा टीम के हौसले बुलंद कर दिए थे. टी-20 में जीत के बाद 2011 का वर्ल्ड कप भी अपने नाम किया. और धोनी का सफर चलता रहा और उन्होंने इस दौरान कई शानदार पारियां खेली, टीम इंडिया के ए ग्रेड के खिलाड़ियों की लिस्ट में शामिल हुए, तमाम सीरीज में मैन ऑफ द सीरीज का खिताब अपने नाम किया और इस दौरान कई रिकॉर्ड भी तोड़े और नए रिकॉर्ड स्थापित भी किए.
धोनी ना सिर्फ विकेट के पीछे बल्कि विकेट के आगे भी बेहतरीन खिलाड़ी थे, जिसने उन्हें भारतीय क्रिकेट के इतिहास में सबसे अलग खिलाड़ी के तौर पर स्थापित किया. अपने इसी प्रदर्शन के दम पर धोनी को ओडीआई विश्वकप की टीम की अगुवाई सौंपी गई. युवराज सिंह, गौतम गंभीर जैसे युवा खिलाड़ियों और सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग जहीर खान जैसे अनुभवी खिलाड़ियों के दम पर श्रीलंका खिलाफ धोनी ने विजयी छक्का लगाकर भारत को वनडे क्रिकेट में भी विश्व विजेता बनाया.
धोनी ने ना सिर्फ वनडे, टी-20 बल्कि टेस्ट टीम की भी अगुवाई की और तीनों ही फॉर्मेट में उन्होंने अपनी कप्तानी का लोहा मनवाया. वह एकमात्र ऐसे भारतीय कप्तान हैं, जिनकी अगुवाई में टीम इंडिया ने आईसीसी की सभी टूर्नामेंट में जीत हासिल की. टी-20 विश्व कप, वनडे विश्वकप, आईसीसी चैंपिंयंस ट्रॉफी, इन तीनों में ही टीम इंडिया ने जीत हासिल की.
धोनी ने कुल 90 टेस्ट मैच खेले और इस दौरान उन्होंने 4876 रन बनए, जिसमें 6 शतक और 33 अर्ध शतक शामिल हैं. हालांकि, धोनी ने 26 सितंबर 2014 को अपना आखिरी टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला और टूर के दौरान ही उन्होंने अचानक से टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया था.
एक नज़र धोनी के रिकॉर्ड पर…
टेस्ट- 90 मैच, 4876 रन, 6 शतक, 33 अर्धशतक, सर्वोच्च स्कोर 224, 256 कैच, 38 स्टंपिंग
वनडे- 350 मैच, 10773 रन, 10 शतक, 73 अर्धशतक, सर्वोच्च स्कोर 183, एक विकेट, 321 कैच, 123 स्टंपिंग
टी-20- 98 मैच, 1617 रन, 2 अर्धशतक, सर्वोच्च स्कोर 56, 57 कैच, 34 स्टंपिंग