कारगिल युद्ध के बारे में भला कौन नहीं जानता है. आज भी जब हम इस युद्ध की चर्चा करते हैं, तो कई जांबाज़ जवानों के नाम हमारे ज़ेहन में आ जाते हैं. चाहे वो कैप्टन विक्रम बत्रा हों या परमवीर चक्र विजेता मनोज पांडेय. ऐसे ही न जानें कितने सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगाते हुए कारगिल पर विजय पताका लहराया था.
लेकिन क्या आपको ये पता है कि इस बात की खबर किसने दी थी? किसके कहने पर भारतीय सेना ने कारगिल की तरफ फ़ौज भेजने का फैसला लिया था?
वो नाम है ताशी नामग्याल.
‘अगर वो मेरा नया-नवेला याक न होता तो शायद मैं उसकी तलाश करने भी न जाता और शायद मैं पाकिस्तानी घुसपैठियों को देख भी ना पाता.’
ये शब्द हैं 55 साल के ताशी नामग्याल के जिन्होंने संभवता सबसे पहली बार कारगिल की पहाड़ियों में छिपे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को देखा था.
ये साल 1999 की बात है जब एक दिन ताशी नामग्याल कारगिल के बाल्टिक सेक्टर में अपने नए याक की तलाश कर रहे थे. वे पहाड़ियों पर चढ़-चढ़कर देख रहे थे कि उनका याक कहां खो गया है.
इसी दौरान कोशिश करते-करते उन्हें अपना याक नज़र आ गया. लेकिन इस याक के साथ-साथ उन्हें जो नज़र आया उसे कारगिल युद्ध की पहली घटना माना जाता है. उन्होंने कुछ संदिग्ध लोगों को देखा और भारतीय सेना को तत्काल इस बारे में जानकारी दी.
वह बताते हैं, ‘मैं एक ग़रीब चरवाहा था. उस दौर में मैंने वो याक 12000 रुपये में ख़रीदा था. ऐसे में जब पहाड़ों में मेरा याक खो गया तो मैं परेशान हो गया. सामान्य तौर पर याक शाम तक वापस आ जाते हैं. लेकिन ये एक नया याक था,
जिसकी वजह से मुझे उसकी तलाश में जाना पड़ा. उस दिन मुझे याक तो मिल गया लेकिन उस दिन मुझे पाकिस्तानी सैनिकों को देखने का भी मौक़ा मिला.’
ये सूचना मिलने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल में एक युद्ध लड़ा गया, जिसमें क़रीब 600 भारतीय सैनिकों की मौत हुई. कारगिल से साठ किलोमीटर की दूरी पर सिंधु नदी के किनारे ताशी गारकौन गांव में रहते थे.
इस युद्ध ने पाकिस्तान की नीतियों का भंडाफोड़ कर दिया था. यही नहीं इसके बाद भी पाकिस्तान ने एक के बाद एक हमले किये. लेकिन हर बार आतंकिस्तान को हिंदुस्तान ने मुंहतोड़ जवाब दिया है.