देश कोई भी हो. चाहे हिंदुस्तान हो या पाकिस्तान. हर एक जगह राजनीतिक दांवपेंच से ज़्यादा कूटनीतिक चाल को तवज्जों दी जाती है. और जब बात सियासी गठजोड़ और उठापटक की हो. तब एक नाम हमेशा शिखर पर दिखाई देता है. जिसे हम हिंदुस्तान का जेम्स बॉन्ड भी कह सकते हैं.
अब आप लोग जेम्स बॉन्ड से तो अच्छी तरह परिचित होंगे ही. अब अगर किसी का नाम जेम्स बॉन्ड है, तो उसके कारनामे कैसे होंगे. और उसमें भी अगर उसे ये उपाधि पाकिस्तान से मिले तो आप सोच सकते हैं. कि आखिर कितना शातिर होगा वो शख्स.
तो जान लें यह शख्सियत कोई और नहीं, बल्कि हमारे देश के नेशनल हीरो अजित डोभाल हैं. जोकि पिछले 3-4 सालों से देश के मीडिया में छाये हुए हैं. अजित डोभाल देश के 5वें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं और लगातार 6 साल से इस पोस्ट की शोभा बड़ा रहे हैं.
अजित डोभाल का जन्म 20 जनवरी, 1945 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में एक गढ़वाली ब्राह्मण परिवार में हुआ. उनके पिता मिलिट्री में थे. जिसके चलते अजित डोभाल अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर के मिलिट्री स्कूल से पूरी की थी. इसके बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किया और पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद आईपीएस की तैयारी में लग गए. और कड़ी मेहनत के दमपर पर अजित डोभाल केरल कैडर से 1968 में आईपीएस के लिए चुन लिए गए.
अजित डोभाल कितने मेहनती थे. इस बात का अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि ये सिर्फ सात साल ही पुलिस की वर्दी पहने. डोभाल मेधावी सेवा के लिए पुलिस पदक जीतने वाले सबसे युवा पुलिस अधिकारी थे. उन्हें पुलिस में छह साल बाद ही पुरस्कार दिया गया था.
अब बात अजित डोभाल और उनके कारनामों की…
बात है साल 1961 की. जब मिजोरम में विद्रोह चल रहा था. उसी समय मिज़ो नेशनल फ्रंट का गठन होता है. उस समय ललडेंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट ने हिंसा और अशांति फैला रखी थी. जो 1966 में और भी ज्यादा बड़ा और विकराल रूप ले लेती है. लोगों का सरकार के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा था और जनता एक अलग देश की माँग करने लगी. ये हिंसा लगातार 20 साल तक चलता रहा. लेकिन सन 1986 में मिजोरम accord को साइन करने के मिज़ो नेशनल फ्रंट के नेता लालडेंगा को टेबल पर आना पड़ता है. बाद में यही लालडेंगा मिजोरम के पहले मुख्यमंत्री बनते है. लेकिन इसमें जिसका सबसे बडा हाथ होता है. वो होते हैं अजित डोभाल। क्योंकि यही वह व्यक्ति थे. जिन्होंने लालडेंगा के 7 में से 6 व्यक्ति को अपने पाले में कर लेते हैं और लालडेंगा को झुकने पर मजबूर कर देते हैं. ये अजित डोभाल के लाइफ का पहला सक्सेसफुल ऑपरेशन होता है.
दूसरा ऑपरेशन…
बात उस समय की है. जब पंजाब में खालिस्तानी मूवमेंट अपने चरम पर था और एक अलग देश का माँग हो रही थी, जिसका नाम खालिस्तान रखा जाना था. जो पंजाब और कुछ हिस्सा हरियाणा और हिमाचलप्रदेश को मिलकर कर बननेवाला था.
वहाँ मिलिटेंट बहुत सक्रिय थे, जिसको ख़त्म करने के लिए 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ जिसमें बहुत सारे मिलिटेंट मारे गए थे. लेकिन फिर भी कुछ बच गए जो 1988 में अमृतसर के गोल्डन टेम्पल में घुस गए. और वो बहुत दिनों तक वही छिपे रहे. जिसे ख़त्म करने के लिए ऑपरेशन ब्लैक थंडर चलाया गया. जो ब्लैक कमांडो के नेतृत्र में चलाया जा रहा था. लेकिन सबसे मुश्किल था कि उसके मूवमेंट का कुछ भी इनफार्मेशन कमांडोज़ को नहीं मिल पा रही थी.
तभी एंट्री होती है. अजित डोभाल की. अजित डोभाल एक मामूली रिक्शा चलानेवाल बन कर एक रिक्शा लेकर गोल्डन टेम्पल के पास जाते हैं. और वो ऐसे ही लगातार 10 दिनों तक जाते हैं. और वहाँ एक दो चक्कर लगाते और वापस आ जाते. अगले दिन फिर जाते हैं. लेकिन इसबार आंतकवादी को शक होता है. और वो उनको बुलाता है और पूछता है कि तुम 10 दिनों से यहाँ क्यों घूम रहे हो. तभी अजित डोभाल बोलते हैं हम आपकी मदद करना चाहते हैं. क्योंकि मुझे पाकिस्तान ने भेजा है. आपकी सूचना उन तक पहुँचाना है. और इस तरह से वो सारी सूचना को इकठ्ठा कर कमांडोज़ को बताते हैं, जिसके आधार पर ऑपरेशन ब्लू थंडर को अंजाम दिया गया. और तो और जिस समय यह ऑपरेशन चल रहा था. उस समय अजित डोभाल आंतकवादी के साथ थे. और जब इस ऑपरेशन का अंत होता है. अजित डोभाल हर तरफ छा जाते हैं.
अब तीसरा ऑपरेशन…
तीसरा ऑपरेशन है अजित डोभाल के जासूस बनने की. लेकिन ये ऑपरेशन सबसे कठिन था. क्योंकि सामने था पाकिस्तान. पाकिस्तान भारतीय जासूस के पकड़े जाने पर क्या करता है. ये बात किसी से छुपी नहीं है. ऐसे देश में जासूसी करना कितना मुश्किल होता होगा. लेकिन आपको जान कर ताजुब होगा कि हमारे हीरो अजित डोभाल ने सात साल तक पाकिस्तान में जासूसी की.
अजित डोभाल पाकिस्तान में RAW के लिए काम करते थे. पाकिस्तान से इनफार्मेशन जुटाकर RAW को दिया करते थे. इस दौरान अजित डोभाल पाकिस्तान में मुस्लिम बन कर रहते थे. लेकिन एक दिन ऐसा क्या हो गया. जब बात मौत पर आ बनी.
दरअसल, अजित डोभाल लाहौर में थे. और औलिया के दरगाह पर गए थे. तभी एक व्यक्ति उनको रोकता है और उनको बुलाता है. वो व्यक्ति पूछता है तुम हिन्दू हो. डोभाल बोलते है. नहीं मैं मुस्लिम हूँ. वह व्यक्ति पूछता है तुम्हारे कान में छेद कैसे है. दरअसल, बचपन में उनका कान को छेदा गया था. उस आदमी के सवाल से अजित डोभाल बहुत अचंभित होते हैं. और मन ही मन सोचते हैं कि आखिर इतना छोटा छेद इसको कैसे दिख गया.
इसपर डोभाल बोलते है कि हाँ मैं हिन्दू था. लेकिन मैं कन्वर्ट हो गया हूँ, फिर वह व्यक्ति बोलता है कि प्लास्टिक सर्जरी करवा लो. और फिर वो अंदर बुलाता है और बताता है कि मैं भी एक हिन्दू था. इन लोगों ने मेरे पूरे परिवार को मार दिया और जिसके डर से मुझे भी धर्मपरिवर्तन करना पड़ा. वो अपने पास से एक एक दुर्गा माता और एक हनुमान जी का फोटा दिखाता है……. इस घटना का ज़िक्र अजित डोभाल कई बार कर चुके हैं.
इन्हीं में से एक है कश्मीर के उग्रवादियों पर किया गया ऑपरेशन.
कश्मीर में भी अजित डोभाल ने उल्लेखनीय काम किया था. इस ऑपरेशन के दौरान अजित डोभाल ने उग्रवादी संगठनों में घुसपैठ कर ली थी. उन्होंने उग्रवादियों को ही शांतिरक्षक बनाकर उग्रवाद की धारा को मोड़ दिया था. इसके लिए अजित डोभाल ने एक प्रमुख भारत-विरोधी उग्रवादी कूका पारे को अपना सबसे बड़ा भेदिया बना लिया था.
पिछले पाँच-छह साल में भारतीय सेना का पाकिस्तान या और भी पड़ोसी मुल्क को लेकर जो रणनीति में बदलाव हुआ है. उसका बहुत बड़ा कारण अजित डोभाल हैं. अजित डोभाल से पहले ये रणनीति रहती थी कि यदि दुश्मन कुछ करे, तो हम उसका मुँह-तोड़ जबाब देंगे.
लेकिन डोभाल ने कहा- हम दुश्मन की कार्रवाई का इंतज़ार नहीं करेंगे. हम उस से पहले ही उसको निस्तेनाबूत कर देंगे. और भारत ने ठीक वैसा ही किया.
यही वजह रही कि इतिहास में पहली बार सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक हुआ. आज हमारा बदला हुआ कश्मीर हमारे सामने है. भारतीय सेना ने म्यांमार और पाकिस्तान में सीमापार सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए आतंकियों को सीधा और साफ संदेश दे दिया है कि अब भारत आक्रामक-रक्षात्मक रवैया अख्तियार कर चुका है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अजित डोभाल दोनों ही देश की आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए आक्रामक शैली को सही मानते हैं. पाकिस्तान के हमलों के जवाब में की गई सर्जिकल स्ट्राइक इसी का परिणाम है.
अजित डोभाल के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर के तौर पर जिम्मेदारियां काफी बढ़ गयी हैं. उन्हें प्रधानमंत्री को देश के लिए आवश्यक आंतरिक और बाहरी मामलों में सलाह देनी होती हैं, और कुछ संवेदनशील मुद्दों को प्रधानमंत्री के साथ देखना पड़ता है. क्योंकि अजित डोभाल अब स्ट्रेटेजिक पॉलिसी ग्रुप के चेयरमेन भी हैं.
डोभाल ने पाकिस्तान से जुड़े मसलों को जिस तरीके सुलझाया है. उसके लिए पूरा देश उनका प्रशंसक बन चुका है. लेकिन ये भी सच है कि डोभाल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भले हाल के कुछ सालों में मिली हो. लेकिन वो देश-हित में लम्बे समय से काम कर रहे हैं. अजित डोभाल पीएम मोदी के सबसे करीबी और सरकार में पॉवरफुल व्यक्तियों में गिने जाते हैं.
फ़िलहाल, आज की कहानी ख़तम. आगे मिलेंगे. एक नई और धमाकेदार स्टोरी के साथ. तब तक के लिए नमस्कार…